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थैंक यू ( एक सत्य लघु कथा )

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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”थैंक यू ” शब्द शायद भारत मैं जब ईजाद हुआ होगा जब अँग्रेज भारत आये और अपनी अंग्रेजी भारत में छोड़ गये तब से यह शब्द तहजीब के दायरे में आने लगा । जब बच्चा थोडा बोलने लगता है तब हर पढ़े लिखे क्या बल्कि अनपढ़ लोग भी अपने बच्चे को थैंक यू शब्द बोलना सिखाने लगते हैं और वह भी रट्टू तोते की तरह बोलता रहता हैं चाहे इस शब्द का मतलब उसे समझ आये या नहीं आजकल तो यह शब्द आम है खैर यह शब्द कहाँ से आया कहाँ से नहीं लेकिन इस शब्द का मतलब मुझे जब समझ में आया तब इस शब्द ने मेरे जीवन में खलबली मचा दी ।
जब मेरे पति की पोस्टिंग लखनऊ आयी हम मैस में रुके हुए थे । एक हफ्ते बाद जो सबसे बड़ा धक्का लगा वह था मेरे कुत्ते का चोरी होना। उसका जाना मेरी जिन्दगी में खालीपन दे गया । पूरे ८ महीने बाद मैने अपने पति से जिद करके दूसरा कुत्ता रोबर्ट खरीद लिया । हमारे सूने घर में फिर से रौनक लौट आई । मुझे मॉर्निंग वाक बिलकुल भी पसंद नहीं लेकिन अपने पप्पी की वजह से सुबह रोज उठकर जाना पड़ता और मुझे अब घूमने में उलझन भी न होती और सबसे मजेदार बात यह थी कि राह में चलते जाने अनजाने कई लोग मेरे मित्र भी बन गये । उनमें से एक बुजुर्ग अक्सर मुझे मिलते जो छड़ी के सहारे धीरे धीरे मॉर्निंग वाक करते वह भी मेरे मित्र बन गये । सबसे हैरान कर देने वाली बात यह होती जब भी मैं उनसे विदा लेती तो वह मुझे ” थैंक यू ”कहना नहीं भूलते पहले मैंने इस शब्द पर ध्यान नहीं दिया लेकिन न जाने क्यूँ जब भी मैं अकेली होती तब यकायक अंकल का ख्याल आते ही यह शब्द मेरे कानों में गूँजने लगता धीरे धीरे इस शब्द ने मेरे अंदर जिज्ञासा ने जन्म ले लिया ।
एक दिन जब मेरे से रहा नहीं गया तब मैंने अंकल से पूँछा ” अंकल जब भी मैं आपसे बात करके घर लौट रही होती हूँ तब आप मुझे ”थैंक यू ” क्यों कहते हैं ?
बेटी तुम हमें अपना इतनी व्यस्त जिन्दगी में बेशकीमती समय देती हो वरना आजकल कौन हम बुजुर्गों से बात करता है ? नमस्ते करना तो खैर दूर की बात है हम बुजुर्गों के लिए किसी के पास व्यस्त जिन्दगी में समय ही कहाँ ? कोई हमें अपना थोडा सा कीमती समय और इज्जत दे और हमारा हालचाल पूँछे बस यही तो चाहते हैं हम बुजुर्ग , इससे ज्यादा हमें कुछ नहीं चाहिए । कहते हुए उनकी आँखें नम हो गयीं । जब मेरा ऑपरेशन हुआ तो उन्होंने एक पिता और मित्र का रोल अदा किया जिससे मुझे अनजान शहर में अपनेपन का अहसास होता । उन बुजुर्ग की याद पूरी जिन्दगी में कभी भी खत्म नहीं होगी ।
अंकल ने इस” थैंक यू ” शब्द के पीछे जो बुजुर्गों की भावनाएं बिखेरीं उसे सुनकर मैं अपनी जिन्दगी में पहली बार ओतप्रोत हुई । उन्होंने अपनी बात से सभी उम्र के लोगों को संदेश दे दिया । मैं जहाँ भी जाऊँगी ,उनकी याद मेरे जीवन में हमेशा बनी रहेगी ।
यह कहानी उन्ही अंकल की याद में मैंने अपने ब्लॉग में समर्पित की है ।

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