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जीवन चलने का नाम

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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मार्निंग वाक के लिए मैं अक्सर सड़क के फुटपाथ को ही चुनती हूँ , अक्सर मेरी निगाह रास्ते में पड़ने वाले पार्क की तरफ वहाँ का उत्साहपूर्ण वातावरण देखकर उठ जाती है । वहाँ काफी सारे बुजुर्ग कसरत करते हुए नजर आते हैं और थकान उतारने के लिए पेड़ के नीचे बने सीमेंट के प्लेटफार्म पर बैठे हुए गप्पें मारते हुए नजर आते हैं । आज अनायास ही मेरे कदम पार्क की तरफ बढ़ गये । मैं उनको नमस्ते करके पेड़ के पास ही बनी बैंच पर बैठकर अपनी थकान उतारने लगी । मेरी निगाह पार्क की प्राक्रतिक खूबसूरती का जायजा लेने लगी । तभी अनायास ही मेरे कानों में बातों की आवाज पड़ने पर मेरा ध्यान बुजुर्गों की तरफ खिंच गया ।
” अरे शर्मा जी अब तो आप रिटायर हो गये और बताइए आगे क्या करने का इरादा है ? अब तो आपके पास वक्त ही वक्त है ” यह आवाज रावत जी की थी जो बहुत ही जिंदादिल शक्स हैं ।
” अरे रावत जी करना कराना क्या है ? पूरी जिन्दगी तो काम करते हुए ही गुजर गयी , बस राम भजन करेंगें और क्या ? जिन्दगी के जितने भी दिन बचे हैं पूजा पाठ में गुजरेंगे ”। शर्मा जी ने आसमान की तरफ हाथ उठाते हुए कहा ।
” पूजा पाठ में , क्यों अरे कोई हॉबी वगैहरा आगे बढाओ ” रावत जी ने आश्चर्य चकित होकर कहा ।
” अरे कहाँ हॉबी बॉबी रावत जी , हॉबी के लिए वक्त ही कहाँ मिला पूरी जिन्दगी तो जिम्मेदारियों में गुजर गयी ” ।
” हॉबी नहीं है तो अभी कुछ सीख लो न , अभी भी क्या बिगड़ा है भक्ति में ही पड़े रहोगे तो लडके बच्चे भी तुमको नाकारा समझ लेंगें खाली समय का सदुपयोग करो मेरे भाई ”। रावत जी ने शर्मा जी को समझाते हुए कहा ।
”अरे रावत जी क्या बात करते हैं बूढ़ा तोता भला अब इस उम्र में क्या सीखेगा ? अब तो पोते पोतियों के सीखने की उम्र है मेरी थोड़े ही ”।
ऐसी सोच रखने वाले जाने कितने ही बुजुर्ग होंगे जो रिटायर्मेंट के बाद अपने खुद को धार्मिक कार्यकलापों में लीन कर लेते हैं । लेकिन एक सवाल मेरे सामने खड़ा हुआ है कि भला क्या कभी सफलता भी उम्र की मोहताज हुई है ?
नहीं , सफलता उम्र की मोहताज नहीं है । द्रढ़ इच्छा रखने वाले या हर पल कुछ ना कुछ नया सीखने की चाहत रखने वाले व्यक्तियों के लिए सफलता कभी भी उनकी उम्र नहीं देखती ।
सफल व्यक्तियों के लिए सफलता कभी भी उम्र की मोहताज नहीं रही चाहे व्यक्ति विकलांग हो चाहे व्रद्ध जब तक वे खुद को अयोग्य न समझ लें । हमारे देश और विदेशों में भी जाने कितने ऐसे उदाहरन हैं इतनी उम्र होने के बाद भी सफलता जिनकी मुट्ठी में रही ।
* जार्ज बर्नाड ९३ की उम्र में उन्होंने ” फॉर फेच्ड फिबल्स ” प्रसिद्ध नाटक लिखा ।
* ८२ की उम्र में लिओ टाल्सन ने ” आइ कैन नॉट बी साइलेंस ” लिखा ।
* ८८ साल की उम्र में माइकल एंजलो ने एक चर्च का डिजाइन तैयार किया था ।
* ५० की उम्र के बाद नेन्सन ने लेखन की दुनिया में कदम रखा और ६१ की उम्र मे सोवियत रूस के सहायता शिविरों में लग गये जिसकी वजह से उन्हेंशांति का नोबल पुरुस्कार प्राप्त हुआ ।
* ६६ साल की उम्र में लिओनार्ड – डॉक्टर विंसी ने अमर चित्र की रचना की ।
हमारे देश में महात्मा गाँधी का जीता जागता उदाहरन है जिनकी वजह से हम आजादी की साँस ले रहे हैं उन्होंने अंतिम समय तक देश की सेवा की ।
* माखन लाल चतुर्वेदी , शुक्ल की कलम भी उम्र के बंधन को रोक नहीं सकी ।
* और २१ वीं सदी के महान नायक अमिताभ बच्चन जी हमारे सामने हमारे मार्गदर्शक बनकर खड़े हैं जो उम्र के सारे बंधन तोडकर आज सफलता के शिखर पर खड़े हैं । जिन्होंने असफलता को भी अंगूठा दिखा दिया और कभी हार नहीं मानी ।
सिर्फ व्रद्ध ही नहीं सफलता को पाने में विकलांग व्यक्तियों ने भी अपनी छाप छोड़ी है जो आज आसमान में सूरज बनकर चमक रहे हैं और लोगों को जिन्दगी में कभी भी हार ना मानने की प्रेरणा दे रहे हैं ।
* विकलांग व्यक्तियों में ८० वर्षीय महिला एक्स जिन्होंने व्हील चेयर से जापान के माउन्ट फूजी पर्वत पर पहुंचकर यह सिद्ध कर दिया कि विकलांगता भी सफलता की राह में रोड़ा नहीं बन सकती बस कुछ कर गुजरने की चाह होनी चाहिए ।
* बीथोवन जो बहरे थे उन्होंने ऐसी संगीत लहरी तैयार की जो आज तक अमर है ।
* नेत्रहीन लुइस ब्रेल ने ” ब्रेल सिस्टम ” को बनाकर लाखों नेत्रहीन लोगों को आगे बढने का अवसर दिया ।
* जोजफ पुलिंजर ” जिनकी स्म्रति में आज पुलिंजर पुरुस्कार प्रदान किया जाता है नेत्रहीन होने के बाबजूद भी उन्होंने पूरा जीवन बेचारा होकर नहीं गुजारा । वह एक प्रसिद्ध पत्रकार रहे ।
* भारतीय साहित्य में सूरदास ,इलाचंद जोशी , बाजपेयी जो नेत्रहीन होते हुए भी जिनका नाम आज भी अमर है ।
मैं इस लेख के जरिये हताश लोगों को या जो रिटायर होकर अपनेआप को नकारा समझ रहे हैं या शारारिक तौर पर विकलांग हैं और खुद को धरती पर बोझ समझ रहे हैं उन्हें यही संदेश देना चाहती हूँ कि जीवन रुकने का नाम नहीं है बल्कि चलने का नाम है वह भी आखिरी साँस तक । साथ ही मैं जागरण ब्लॉग के उन वृद्ध लेखको को अपने बड़े भाई हरी रावत जी , प्रदीप कुशवाह जी ,अशोक दूबे जी , अरुण जी ,निशा मित्तल जी , अलका गुप्ता जी को शत शत नमन करती हूँ जो युवा पीढ़ी के लिए हर उम्र में आगे बढने की प्रेरणा दे रहे हैं और रिटायर्ड होने के बाद भी किसी ना किसी एक्टिविटी में खुद को व्यस्त किये हुए हैं । इन सभी को देखकर मैने यही सिखा कि सफलता उम्र की मोहताज नहीं है । बुढ़ापे को हँसकर गुजरना है ना कि रो रोकर और अपने आपको युवाओं के लिए एक उदाहरन बनना है । क्योंकि —–
जीवन चलने का नाम , चलते रहो सुबह शाम

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