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बचपन के दिन भुला ना देना

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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मेरी मम्मी कालिज में प्रधानाध्यापिका थीं । उनका कालिज प्राइमरी से इंटरमिडियट तक है । उस वक्त मैं प्राइमरी में पढ़ती थी हालाँकि हमारा घर स्कूल से ज्यादा दूर नहीं है फिर भी मेरी मम्मी ने मेरे लिए रिक्शा लगवाया हुआ था । मुझे आज भी याद है जब भी तेज बारिश होती थी तब सडकों पर पानी भर जाया करता था फिर हमारी मित्र मंडली रिक्शे में से कूदकर पानी में छपाछप करते हुए हंसते खिलखिलाते हुए पानी को पैर से उछालते हुए चलते थे और हमारे साथ साथ रिक्शा चलता था और सबसे बड़ी मधुर याद जो आजतक मेरे जहन में आज भी है वह यह कि मुझे जब भी कभी बारिश होती है तो आज भी अपनी दादी का वो चेहरा याद आता है जब वह बेताबी से मेरे घर की बालकोनी में भीगती खड़ी हुई मेरे आने का इंतजार करतीं ।
हम घर आकर कागज की नाव बनाकर पानी से भरे गडढ़ों में तैराया करते और एक दूसरे से नाव आगे निकलने की जबरदस्त होड़ लगी रहती जिसकी भी नाव आगे निकल जाती तो सारे बच्चे हो हो करके ताली बजाकर खूब जोर जोर से हंसते और पेड़ों पर चढ़ना ,एक दूसरे के पीछे दौड़ना , खो खो खेलना ना जाने कितनी ही यादें हैं जो मुझे बचपन की यादों के सागर में ले जाती हैंऔर सबसे बड़ी बात उस वक्त हमको रोकने वाला कोई के नहीं होता था। आज जब भी मैं जगजीत सिंह की गजल ” ये दौलत भी …. ” सुनती हूँ तो अपने बचपन के दिनो की अहमियत अब समझ में आती है । कहते हैं कि बचपन उसी को ही याद रहता है जिसका बचपन बहुत अच्छा गुजरा हो । आजकल तो लाइफ स्टाइल ही बदल गयी बच्चों के चेहरे से वो मासूम हँसी ही धीरे धीरे गायब होती जा रही है । आजकल चहकने वाले बच्चे भी तनावग्रस्त रहने लगे हैं । आखिर क्यूँ , क्या उन्हें जीने का हक नहीं रहा उनका बचपन धीरे धीरे कहाँ गायब होता जा रहा है ? आखिर कौन है इन सबका जिम्मेदार ?
टूटते संयुक्त परिवार बच्चों के लिए एक चिंता का विषय बनता जा रहा है । बड़े शहरों में माँ के द्वारा क्रेच में तीन , चार पाँच साल के बच्चे को छोडकर जाना बच्चों में असुरक्षा का भाव भर देता है । जिनके बच्चों की माँओं का ऑफिस सुबह के आठ बजे से शाम के पाँच बजे तक होता है उन बच्चों का कुछ वक्त तो अपने दोस्तों के साथ कट जाता है लेकिन दूसरे बच्चों के घर चले जाने पर वह खुद को बहुत तन्हा और असुरक्षित महसूस करता है । माँ भी क्या करे किसके पास छोड़े बच्चे को घर में न तो दादा दादी हैं न चाचा चाची हैं आखिर भुगतना तो पड़ता है आखिर बच्चे ही को ना । यही अकेलापन बच्चे के लिए घातक सिद्ध होता जा रहा है । किसी भी बच्चे के पूर्ण विकास के लिए परिवार के सदस्यों के साथ समय बिताना अति आवश्यक है जो उसे आगे चलकर आदर्श व्यक्ति बनाएगा लेकिन आजकल माता पिता इतने व्यस्त हो गये हैं कि उनके बच्चे घर की बजाय क्रेच रहकर बड़े होते हैं ।
औपचारिकपूर्ण जीवन —- कभी किसी वक्त हम सादा जीवन उच्च विचार पर ज्यादा जोर दिया करते थे लेकिन आजकल हम सादा जीवन बिताने की बजाय औपचारिक जिन्दगी जी रहे हैं । जब भी बच्चे खुलकर हँसते हैं या शोर मचाते हैं तो वह हमसे सहन नहीं होता । हम उन्हें यह कहकर चुप कर देते हैं कि” जोर से हँसना , चिल्लाना असभ्य लोगों की निशानी है पडौसी क्या कहेगें ” ? यही औपचारिकता नन्हें मुन्नों का बचपन खत्म कर देती है । ऐसी बंदिशें हमारे वक्त में नहीं थीं । हम और पडौसियों के बच्चे खुलकर हँसते भी थे और शोर भी मचाते थे ।
आजकल के बच्चे जितने तनावग्रस्त रहते हैं वे अपना गुस्सा शब्दों में नहीं बल्कि चीजों को फेंककर प्रकट करते हैं पर माँ बाप उसके गुस्से को कभी मारपीट कर तो कभी डांटकर शांत करने की कोशिश करते हैं , उसके तनाव को समझ ही नहीं पाते जो सरासर गलत है इसकी बजाय उनके मन में झांककर देखना चाहिए और उनकी मानसिकता समझनी चाहिए ।
आज तनाव की सबसे बड़ी वजह है शत प्रतिशत नम्बर लाना । जब बच्चे छोटे होते हैं तब यह तनाव उनके माता पिता को रहता है और जब बड़े होते हैं तो वे भी तनाव में आ जाते हैं । परसेंटज कम होने का तनाव उन्हें खुलकर बचपन भी नहीं जीने देता । एक तो वे खुद तनावग्रस्त रहते हैं ऊपर से अध्यापक भी कम नम्बर आने पर उन्हें और उनके माता पिता को तनावग्रस्त कर देते हैं । जोकि यह गलत है हर माता पिता को यह सोचना चाहिए कि उन्हें अपने बच्चे को योग्य व्यक्ति बनाना है ताकि वह जिन्दगी में कभी पीछे न रहे ना कि प्रतिशतों पर तोलना ।
जब भी बच्चा तनाव में हो उसे रो लेने देना चाहिए । कहते हैं कि रोकर मन हल्का हो जाता है जब वह चुप हो जाये तो उसकी बात ध्यान से सुनें और उसकी समस्याओं का हल निकालें और भरोसा दें कि आप उसके साथ हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि माता पिता चाहें कितनें भी व्यस्त क्यों न रहें फिर भी उन्हें अपने बच्चे को पूरा समय देना है । वे व्यस्त हैं इसका दंड अपने मासूम बच्चे को कभी न दें । वे बच्चे को ऐसा बचपन दें जिसे वह पूरी जिन्दगी याद रखे क्योंकि ये जिन्दगी बार बार नहीं मिलती । उन्हें मधुर और मीठी यादें दें नाकि कडवी यादें ।

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