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हिंदी दिवस पर ‘ पखवारा ‘ के आयोजन का कोई औचित्य है या बस यूँ ही चलता रहेगा सिलसिला ? contest

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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जब हम पढ़ते थे उस समय जब हमारा कोई साथी अंग्रेजी में बात करता था तब हम कहते कि अंग्रेज चले गये और अंग्रेजी बोलने के लिए तुझे छोड़ गये . इतना ही नहीं विश्वविद्यालय में अगर कोई बी . ए या एम .ए हिंदी विषय में करता तो वह यह बताते हुए कभी इसमें शर्म महसूस नहीं करता और उस वक्त हिंदी भाषा को बखूबी से अपनाते थे . समय धीरे धीरे गुजरने लगा , मैंने आते जाते हुए हिंदी पखवारा के बड़े बड़े पोस्टर जगह जगह लगे हुए देखे . सरकारी कार्यालयों में हिंदी दिवस मनाया जा रहा था . इन् सबको देखकर मैं सोच में पड़ गयी कि १४ सितम्बर १९४९ को हिंदी दिवस मनाने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई और इसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते थे . पहले ये सिर्फ शहरों तक ही सीमित था लेकिन इसकी खनक देश के कोने कोने में पड़ने लगी है और आज देश का बच्चा बच्चा भी हिंदी दिवस के मामले में जागरूक है इसके बाबजूद भी जनता हिंदी को अपनाने से कतरा रही है आखिर ऐसा क्यों क्या जनता पहले अब ज्यादा पढ़ी लिखी हो गयी है या हिंदी को छोडकर अंग्रेजी अपनाने लगी है . वह समझ चुकी है कि जो सरकार हिंदी पखवारा मनाते हैं या हिंदी दिवस पर हिंदी की दुर्दशा होने का दुःख प्रकट करते हैं एक हफ्ते तक हिंदी फ़ैलाने का ऐलान करते हैं या मगरमच्छी आंसू बहाते हैं यह सब ढोंग मात्र है उन्हीं नेताओं के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढने की बजाय विदेशों में पढ़ते हैं और अपनी ही भाषा से वंचित हैं क्या इसलिए हमारे देश में हिंदी पखवारा औप्चारिक मात्र बनकर रह गया है .
एक सवाल रहरहकर मेरे मन में उठ रहा है क्या एक हफ्ते तक हिंदी भाषा का सम्मान करने से क्या हिंदी भाषा को बढ़ावा मिल पायेगा ? जिस हिंदुस्तान का लगभग तीन चौथाई भाग हिंदी भाषा को समझ पाता है तो क्या हिंदी पखवारे का नाम देकर हिंदी भाषा को पूरे देश में फैला पायेंगें फिर यह हिंदी दिवस मनाने की औप्चारिकता क्यों ? मैंने भारत के अलावा किसी भी देश को अपनी भाषा दिवस मनाते हुए न ही देखा न ही सुना फिर हिंदुस्तान में इसकी क्या आवश्यकता आ पड़ी ? जो सरकार एक हफ्ते तक हिंदी दिवस मनाती है और खूब जोर शोर से भाषण देती है उसी सरकार के नेता संसद में अंग्रेजी में बोलकर अपनी शान समझते हैं और हिंदी में बोलना अपनी बेइज्जती फिर भला हिंदी भाषा को कैसे सम्मान मिल सकता है ? एक हफ्ते तक सरकारी दफ्तरों में हिंदी भाषा में काम करने या स्कूलों में हिंदी भाषा में प्रतियोगिताएं कर देने मात्र से ही क्या सभी भारतीय अंग्रेजी को छोडकर हिंदी भाषा अपनाने लगेंगें . एक हफ्ते बाद ये सभी फिर से अंग्रेजी में वार्तालाप करते हुए दिखाई देने लगते हैं और दफ्तरों में फिर से अंग्रेजी में कम करना शुरू कर देते हैं इस एक हफ्ते के पखवारे से हिंदी भारत की बिंदी बन जाएगी यह उनका यह एक मात्र वहम है . सभी हिंदी दिवस साल में महज एक त्यौहार की तरह जोर शोर से मनाते हैं फिर टांय टांय फिस कोई भी इस भाषा को दिल से स्वीकार नहीं करता . जनता के दिमांक में यह कूट कूटकर भर गया है कि यह सब बातें किताबों में पढने या सुनने में ही अच्छी लगती हैं अगर अच्छी नौकरी पानी है तो अंग्रेजी को ही अपनाना होगा . इसलिए गरीब से गरीब जनता भी अपने बच्चे को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने के लिए लालायित रहते हैं .
अपनी भाषा कहते हैं तो , हिंदी को मान दिलाना होगा
बस नाम नहीं देना केवल , सच्चा सम्मान दिलाना होगा
” अरुण मित्तल ” जी ने इन पंक्तियों में सच ही कहा है – कि हिंदी दिवस मनाने से कोई फायदा नहीं होने वाला यह सिर्फ एक औप्चारिक मात्र है इसके मनाने से भारत में हिंदी को बढ़ावा नहीं मिलने वाला जब तक भारत का हर नागरिक इस भाषा को दिल से नहीं अपनाएगा .

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