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हिंदी ब्लोगिंग ‘ हिंगलिश ‘ के स्वरूप को अपना रही है . क्या यह हिंदी के वास्तविक रंग ढंग को बिगड़ेगा या इससे हिंदी को व्यापक स्वीकार्यता मिलेगी – contest

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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क्या कभी आपने किसी इन्सान को आम बोलचाल की हिंदी भाषा में आज तक यह कहते हुए सुना है —
ह्रदय विदारक द्रश्य को देखकर मेरे चक्षु अश्रु से द्रवित हो गये . या अतिथि की लहूपत गामिनी बिलम्ब गति से आ रही है या कंठ लंगोट मेरे कंठ में कुछ अधिक ही कस गयी है .
नहीं न , मैंने दादा जी , नाना जी को देखा जब से होश सम्भाला तब से हिंदी के साथ साथ उर्दू का ज्यादातर प्रयोग करते हुए सुना और देखा . उस वक्त हिंदी में उर्दू का समावेश सिर्फ शहरों में ही नहीं ग्रामीण इलाकों में भी ज्यादा देखा . हमारे दादा जी नाना जी के जमाने से हिंदी कम उर्दू भाषा का ज्यादा प्रयोग करते हुए देखा लेकिन जैसे जैसे वक्त बढ़ता गया हिंदी भाषा और उर्दू भाषा के साथ अंग्रेजी भाषा का भी समावेश होने लगा . मैं आप सभी को एक घटना से परिचित करवाती हूँ . —-
मैं विश्वविद्यालय जाने के लिए घर से किसी काम के लिए निकली . मैंने रिक्शे वाले से पूँछा – ” भैया विश्वविद्यालय चलोगे ” . वह मुझसे बोला ” मैडम जी यह कहाँ है ? ” मैंने उसे पता बताया . तो जानते हैं उसने क्या कहा ? उसने कहा ” अरे मैडम जी क्या जब से विश्वविद्यालय , विश्वविद्यालय की रट लगाये जा रही हैं सीधे से यूनिवर्सटी क्यों नहीं कहतीं ? यह कोई काल्पनिक घटना नहीं है यह सच्चाई है जिसे यह मानकर चलना होगा कि जो भाषा सम्भ्रांत परिवार के लोग अपनाते हैं वही भाषा छलनी ( फिल्टर ) होकर गरीबों और ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंचती है . मैंने गरीब से गरीब और अनपढ़ लोगों को हिंगलिश का इस्तमाल खूब खुलकर करते हुए सुना है जिसे बोलकर वे अपनी शान समझते हैं . हमारे समाज में हिंगलिश का प्रयोग धडल्ले से हो रहा है . एक सच तो यह भी है कि पढ़े लिखे लोग शुद्ध हिंदी ( साहित्यिक हिंदी ) अपनाने की बजाय हिंदी भाषा के साथ हिंगलिश भाषा को दिल से स्वीकार कर रहे हैं .
अक्सर मेरे द्वारा दूसरे रिश्तेदारों व परिचितों को यह बताये जाने पर कि ” मेरे लेख जागरण जंक्शन जंक्शन में आ रहे हैं . ” वे छूटते ही पूँछते हैं कि आप शुद्ध हिंदी में तो नहीं लिखती हैं ” . इसका मतलब हमारे समाज में पढ़े लिखे लोगों द्वारा हिंदी तो पसंद की जा रही है पर साहित्यिक हिंदी को हमारा समाज दिल से स्वीकार नहीं कर रहा है इसकी बजाय वह मिलीजुली भाषा को कहीं ज्यादा पसंद कर रहा है . एक बात और जब हिंदी ब्लोगिंग की शुरुवात हुई अगर वे सिर्फ साहित्यिक हिंदी को ही मान्यता देते तो आज हमारे समाज में हिंदी ब्लोगिंग को जो जगह मिली है वह उसे कभी न मिल पाती . हिंदी ब्लोगिंग हमारे समाज में सिर्फ मिलीजुली भाषा को जगह देने की वजह से इसे लाखों लोगों ने पसंद किया और आज भी इसमें लेखक कम होने की बजाय बढ़ ही रहे हैं . यह हिंदी भाषा के क्षेत्र में गजब की क्रांति लायी है . इससे पहले हिंदी भाषा गुमनामी के अंधेरों में खो गयी थी . सिर्फ यह तभी सम्भव हो पाया है जब हिंदी ब्लॉग में हिंगलिश को भी जगह दी . ज्यादातर समाचार पत्र और नेट भी हिंदी के साथ हिंगलिश को भी अपना रहे हैं ताकि हिंदी का प्रसार हमारे समाज में तेजी से हो . मैं तो कहती हूँ कि अगर हिंदी भाषा के साथ हिंगलिश को जगह मिलती है और उससे लोग हिंदी भाषा को अपनाते हैं तो बुराई ही क्या है ?
मैं आपको एक वाक्या बताती हूँ . — एक बार मेरे घर पर चोरी होने पर और उसकी रिपोर्ट लिखवाने पर जब ऍफ़ . आई . आर की कॉपी मेरे घर आई तो पढ़े लिखे होने के बाबजूद भी उसको मैं नहीं पढ़ पाई क्योकि वह शुद्ध हिंदी में लिखी हुई थी . . ”
अगर हमें हिंदी को आगे बढ़ाना है तो सरकार को सरकारी कागजों में भी आसान हिंदी के साथ साथ हिंगलिश को भी अपनाना होगा और इसका जीता जागता उदाहरन हिंदी ब्लोगिंग है जिसके प्रयास ने हिंदी को समाज में उसके खोये स्वरूप को जगह दिलवायी . हिंदी ब्लोगिंग को हिंगलिश अपनाने से व्यापक स्वीकार्यता मिलेगी . इसमें कोई दो राय नहीं .

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