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हिंदी बाजार की भाषा है गर्व की नहीं या हिंदी गरीबों , अनपढ़ों की भाषा बनकर रह गयी — क्या कहना है आपका ? contest

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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जैसे ही मैंने अपना फेसबुक फेस बुक खोला तो एक मिनट बाद मेरी बहिन ( मौसी की लडकी ) जो मैसूर में इफ्को कम्पनी में प्रशिक्षण ले रही है , उसके फेसबुक पर लिखा हुआ आया . ” नमस्ते बहिन जी ” यह पढकर मैं हैरान रह गयी कि यह क्या लिख रही है ? क्योकि उसकी स्कूली और कालेज की शिक्षा कान्वेंट स्कूल में हुए है . मुझे एक बार को लगा क्या मैं सही पढ़ रही हूँ ? जब मुझे यकीन हो गया तब मैंने उससे मजाक में पूँछा ” बेटा क्या आप भी हिंदी दिवस मना रहे हो ? उसका जबाब आया ” अरे दीदी जब से मैसूर आई हूँ तब से हिंदी बोलने के लिए तरस गयी हूँ .” मैंने अभी तक तो यही सुना था कि हिंदी अनपढ़ और गरीबों की भाषा बनकर रह गयी है फिर मैंने महसूस किया कि ऐसा नहीं है यह सिर्फ हमारी भ्रांति है . मैंने ऐसे कई उच्चाधिकारियों के परिवार देखे हैं जिनमें जिनमें हिंदी और अंग्रेजी के समाचार पत्र आते हैं और उन घरों में सबसे पहले हिन्दी के समाचार पत्रों को ज्यादातर पढ़ा जाता है . इतना ही नहीं जब मेरे बच्चों के स्कूल में वार्षिकोत्सव था तो वहाँ मुख्य अतिथी जम्मू कश्मीर के चीफ मिनिस्टर उमर अब्दुल्ला आये थे उन्होंने यह जानते हुए भी कि यह स्कूल इंग्लिश मीडियम है फिर भी उन्होंने हिंदी भाषा में भाषण दिया . जब कि उनकी सारी शिक्षा बाहर के देश में हुई है . इतना ही नहीं राहुल गाँधी , सोनिया गाँधी जो कि हमारे देश की हैं नहीं , वे तक हिंदी भाषा में बोलने में शर्म महसूस नहीं करते . सोनिया गाँधी , राहुल गाँधी और उमर अब्दुल्ला जैसे बड़े लोगों की शिक्षा दीक्षा भारत में नहीं हुई है फिर भी वे हिंदी बोलने में शर्म महसूस नहीं करते . यहाँ तक कि जितने भी बड़े सेलिब्रिटीज भी हिंदी धडल्ले से बोलते हैं यहाँ तक कि मैंने दूसरे राज्यों में भी डाक्टर , इंजीनियर्स को भी हिंदी में बात करते हुए देखा है फिर भला हिंदी भाषा गरीबों या अनपढ़ लोगों की कैसे हो गयी ? कान्वेंट स्कूल के छात्रों को भी मैंने हिंदी भाषा को दिल से अपनाते हुए देखती हूँ . फिर हम भला कैसे कह सकते हैं कि हिंदी बाजार की भाषा या अनपढ़ , गरीबों की भाषा बनकर रह गयी है ? शिक्षित लोगों की हिंदी भाषा साथ अंग्रेजी भाषा की अच्छी पकड़ होती है जिससे उन्हें अच्छी नौकरी भी मिल जाती है और ज्यादातर सरकारी दस्तावेज हिंदी भाषा में ही होते हैं जिन्हें उच्चाधिकारियों को समझना भी पड़ता है और पढना भी पड़ता है . हिंदी भाषा को त्यागकर अंग्रेजी भाषा का सिर्फ वे लोग करते हैं जो अहंकारी या ज्यादा ही आधुनिक बनने का ढोंग करते हैं . नहीं तो शिक्षित लोग माहौल को देखकर बात करते हैं यानि अगर उनसे कोई हिंदी में बात करता है तो वे हिंदी में बात करते हैं अगर कोई अंग्रेजी भाषा में बात करता है तो अंग्रेजी में . जो अंग्रेजी भाषा का रोना रोते रहते हैं वे जिन्दगी में कुछ करना ही नहीं चाहते कुछ लोगों का कहना है कि हिंदी की वजह से अच्छी नौकरी नहीं मिलती . एक बात बताइए ये किसने कहा कि हिंदी के साथ अंग्रेजी मत सीखो . आदमी का कम से कम दो भाषा पर तो अच्छी पकड़ होनी ही चाहिए . अगर बात करें ग्रामीण इलाकों की उनके पास के शहरों में हजारों अंग्रेजी सिखाने वाले संस्थान खुले हुए हैं . मैं १५ -९-२०१३ को टी .वी के एक चैनल पर देख रही थी कि गाँव के युवा भी अंग्रेजी सिखने के लिए शहरों के अंग्रेजी संस्थान की तरफ रुख करने लगे हैं . आजकल तो वैसे भी गाँव और शहर का फांसला काफी हद तक कम होता जा रहा है फिर अंग्रेजी भाषा पर भी अपनी अच्छी पकड़ रखिये और हिंदी को भी अपनाइए . मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि हिंदी न तो बाजार की , न ही अनपढ़ों की न ही गरीबों की भाषा है वह तो गर्व की भाषा है जिसे शिक्षित लोग भी बोलकर गर्व महसूस करते हैं नाकि शर्म . एक संदेश उन लोगों के लिए जो हिंदी भाषा को हीन समझते हैं और आधुनिक होने का ढोंग करते हैं – दूसरे देशों में अपनी भाषा बोलकर हमारे बारे में पता चलता है कि हम किस देश के वासी हैं फिर अपनी भाषा बोलने में शर्मिंदगी कैसी ? हमेशा एक बात सभी को अपनानी चाहिए —- जैसा देश वैसा भेष .

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