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जिन्दगी एक पहेली का ( अंतिम भाग )

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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निशा फफककर जमीन पर बैठ गयी . मेरे पति उसे उठाते हुए और बोले ” आप मेरी बड़ी दीदी हैं , कहो हाँ या न . मुझे अपना भाई बनाओगी या नहीं मेरे पति उनका हाथ अपने सिर पर रखते हुए बोले . ये क्या अजीब पहेली है मेरे पति की तो कोई बहिन ही नहीं ये खोयी हुई बहिन कहाँ से आ गयी ? फिर ये चक्कर क्या है ? मैं हैरानी से कभी निशा की तरफ देखती तो कभी अपने पति की तरफ . मुझे बताओ दीदी क्या हुआ ? आप ये काम करने पर मजबूर क्यों हुईं ? क्या आप अपने भाई को भी नहीं बतायेंगीं ? उनका रोना रुक चुका था , उन्होंने बताना शुरू किया . मेरे पति ब्रिगेडियर नरेंद्र राना हैं . मेरे दोनों बेटे ९ क्लास में फेल हो गये थे . उन्होंने उन्हें घर से निकाल दिया था . माँ हूँ न इस दुनिया में भटकने के लिए कैसे छोड़ देती ? इनके साथ मैंने भी घर छोड़ दिया .
” लेकिन दीदी आप तो पढ़ी लिखी हैं फिर आपने ये कम क्यों किया ? मैंने पूंछा . नौकरी तो कर लेती पर किराये के इतने पैसे मैं कहाँ से लाती ? इन्हें पढ़ा लूँ या फिर कमरे का किराया ही देती और फिर सर्टिफिकेट भी साथ नहीं लायी .
” बस दीदी आप नीचे सर्वेंट क्वाटर में नहीं रहेंगी . मैं अभी राकेश से कहता हूँ आपका सारा सामान ऊपर लेकर आएगा .”मेरे पति ने कहा .
” नहीं साहब ऐसा हरगिज मत कीजिये ” वह हाथ जोड़ते हुए बोलीं . ” जिस एशो आराम से निकालकर जिन्दगी का मतलब समझाने के लिए मैं उन्हें यहाँ लेकर लायी हूँ मैं उन्हें फिर से एशो आराम की जिन्दगी नहीं देना चाहती . समझने दीजिये उन्हें जिन्दगी का मतलब अगर फिर से उसी जिन्दगी में चले गये तो ये जिन्दगी में कुछ नहीं कर पायेंगें . अगर आप मेरी मदद करना चाहते हैं तो बस इनके पढाई में और इन्हें काबिल बनाने में मेरी मदद कीजिये ताकि अपने पति को मुंह दिखा सकूँ .
” आप परेशान न हों दीदी , आप जैसा चाहेंगीं वैसा ही होगा और आपने ये साहब , साहब की क्या रट लगा रखी है आप मेरा नाम लीजिये न ” . मेरे पति ने उनके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा .
” नहीं साहब आप मुझे दीदी कहेगें मुझे कोई परेशानी नहीं लेकिन मैं आपको भैया नहीं कह पाऊँगी . मैं नहीं चाहती कि कोई यह जाने की मैं किसकी बीबी हूँ .
मेरे पति ने उनको घर के काम से मुक्ति देकर खाली मीनू की देखभाल के लिए लगा दिया . उसके बाद मेरे पति ने उन्हें काम दिलवाना शुरू कर दिया ताकि उन्हें दर दर न भटकना पड़े लेकिन इन सब का पता उन्हें नहीं लगने दिया और दो घंटे उनके बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया . पैसा आने पर वे बच्चों की देखभाल भी ठीक से करने लगीं . उनकी वजह से मेरे पति ने फील्ड पोस्टिंग ले ली . और फिर स्टडी लीव , पता नहीं इन दोनों बहिन भाई का पहले जन्म का बंधन था या कौन से जन्म का इस बात को मैं आज तक नहीं समझ पाई . हम पांच साल साथ रहे दोनों बेटों ने १२ वीं पास करके एक पायलट बन गया दूसरा फौज में चला गया और दीदी शान से अपने पति के घर चलीं गयीं जब गयीं तब मैंने अपने पति को इतना भावुक होकर रोते हुए कभी न देखा . हमारा संबध आज भी उतना ही गहरा है . आज भी उनकी राखी हर रक्षाबंधन पर आती हैं . माँ की ममता भी धन्य है अपने बेटों के लिए अपना सारा एशो आराम छोड़कर चली आई फौज में एक बिर्गेडियर के क्या एशो आराम होते हैं इसको सिर्फ मैं ही जानती हूँ . ऐसी माँओं को शत शत प्रणाम . तभी तो कहते हैं कि पूत कपूत हो सकता है पर माता कभी कुमाता नहीं होती

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