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आस्था के प्रदर्शन के लिए आत्मनियंत्रण की आवश्यकता — jagran junction forum

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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” पाहन पूजै हरि मिलै तो मैं पूजूँ पहार
ताते ते भली , जो पीस खाय संसार ”
अर्थात अगर पत्थर पूजने सी भगवान मिलते हैं तो मैं पहाड़ पूजता हूँ , इस पत्थर की प्रतिमा से तो चक्की ही अच्छी है जिससे सारा संसार अनाज पीसकर पेट भरता है . यह दोहा उस महान व्यक्ति ने लिखा था जिसे हमारे भारतवासी भूल चुके हैं . और कबीरदास जी के दोहे धीरे धीरे पाठ्यक्रम से गायब होने लगे हैं . मुझे आज भी याद है कि हमारे दादा जी के वक्त ज्यादातर लोग कबीरदास जी के अनुयायी थे और वहीँ मेरे पापा भी , वे कभी जीते जी मन्दिर नहीं गये उन्होंने कभी प्रतिमा को नहीं पूजा फिर क्या हुआ क्या धरती फट गयी या आसमान , इतना ही नहीं वे पंडितों और उन साधू संतों के भी खिलाफ थे जो समाज में रहते थे . उनका कहना था कि साधूओं का समाज में भला क्या काम ? जो भी पूजा पाठ करते वे दुनिया को दिखाने के लिए नहीं बल्कि अपने मन की शांति के लिए करते थे और मैं भी आज कबीरदास जी की अनुयायी हूँ और मन्दिरों में जाकर अपनी आस्था का प्रदर्शन नहीं करती . मैं दक्षिण भारत के मन्दिर और उत्तर भारत के मन्दिर भी गयी पर मेरा अनुभव बहुत ही खराब रहा . वहाँ मुझे पाखंड के सिवा कुछ नहीं दिखायी दिया . —-
एक किस्सा मैं आपको व्रन्दावन के मन्दिर ” बांके बिहारी ” के मन्दिर का बताती हूँ —- एक बार मैं अपने पति के साथ बांके बिहारी मन्दिर के प्रांगण में खड़े थे तभी एक छोटी सी बच्ची प्रतिमा के बाहर लगी रेलिंग लांघती हुई प्रतिमा के आगे जाकर खड़ी हो गयी जब वहाँ के पुजारी ने देखा तो निर्ममता से उसका हाथ पकड़कर रेलिंग से नीचे लटका दिया और वह बच्ची घबराकर रोने लगी यह देखकर मेरा ह्रदय चीत्कार उठा वहाँ किसी का भी ह्रदय नहीं पिघला . वहाँ खड़े भक्तों और पुजारी को भी बच्ची में भगवान दिखाई नहीं दिए. कहते हैं कि ” बच्चों में भगवान विराजते हैं ”.
दूसरा किस्सा दक्षिण भारत के मन्दिर का है — मैं अपने ननद व ननदोई के साथ रामेश्वरम के मन्दिर में गयी थी . मैंने सारे पैसे अपने ननदोई को दिए हुए थे . बस मेरे पास सिर्फ १० रूपये ही थे वही मैंने प्रसाद के साथ रख दिए जब पंडित जी ने प्रसाद खोलकर देखा और उसमें १० रूपये देखे तो गुस्से में आकर पूरा प्रसाद जमीन पर फेंक दिया यह देखकर मेरा मन बहुत दुखी हुआ .
ज्यादातर लोगों का मानना है कि विश्वास करो तो पत्थर में भी भगवान मिल जायेंगें . अरे मैं उनसे एक सवाल करना चाहूंगी कि वे विश्वास तो संतों आसाराम , नित्यानंद और निर्मल बाबा जैसे संतों में भी करते हैं फिर एक के बाद एक उन जैसे महान संतों का पर्दाफाश हो रहा है जब आप सही संतों की पहचान करने में नाकामयाब हैं तो भगवान को इन पत्थरों में कैसे ढूँदेंगें कैसे पहचानेगें ? पहले इन्सान की तो पहचान कर लो फिर पत्थरों में विश्वास करना वरना आस्था का झूंठा प्रदर्शन करने से क्या फायदा ?
” कस्तूरी कुंडली बसे मृग ढूँढै वन माही , ऐसे घट घट राम हैं दुनिया देखे नहीं ”
जनता को अपने दिल में तो भगवान दिखाई देते नहीं फिर इन प्रतिमाओं में भगवान दिखाई दे जाते हैं . कहा भी गया है — भारत में इन्सान तो क्या पत्थर भी पूजे जाते हैं .
यहाँ इन्सान तो पता नहीं हाँ पर पत्थर जरुर पूजे जाते हैं . उन्हें भगवान गरीब के बच्चों , सड़क पर पड़े घायल इन्सान , सड़क पर पड़े घायल जानवर में दिखाई क्यों नहीं देता ? फिर यह कैसी आस्था है ? क्या आप इसे पाखंड नहीं कहेंगें ? मन्दिरों में जाना क्या अपनी आस्था प्रदर्शन नहीं तो फिर क्या है ? आज जनता श्रद्धा से नहीं बल्कि भगवान को डर और स्वार्थवश पूज रही है . जनता मन्दिरों में अपने स्वार्थ के लिए जाती है ना कि भक्ति के लिए . अगर आप सच्चे भक्त हैं तो आपको मन्दिर में ही भीड़ इकट्ठी करनी क्या जरूरी है , और बेवजह मौत को बुलावा देना जरूरी है क्या ? जब भी धार्मिक स्थल पर कोई हादसा होता है तो जनता व मीडिया सारा दोष प्रशासन को देते हैं कहते हैं कि प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम नहीं किये . जरा सोचिये अमरनाथ हो चाहे वैष्णो देवी या अन्य धार्मिक स्थल वहाँ भीड़ अनुमान से कहीं ज्यादा इकट्ठी हो जाती है . जरा सोचकर देखिये कि एकदम से इंतजाम करना कैसे सम्भव है ? मन्दिरों में भीड़ इतनी इकट्ठी हो जाती है वहाँ भगदड़ ही मच जाती है सोचिये कि जनसंख्या बढती चली जा रही है फिर मन्दिरों में आस्था प्रदर्शन करने से क्या लाभ ? आप घर को ही मन्दिर बनाइए . घर के बुजुर्गो , व माता पिता की सेवा कीजिये , कन्या व नारी को सम्मान दीजिये . भाई बन्धुओं के साथ प्यार से रहिये किसी गरीब की हाय मत लीजिये फिर देखिये आपके घर में ही स्वर्ग होगा आपके घर के दरवाजे पर सुख शांति हमेशा अंदर आने के लिए उतावली होगी . अगर आप सच्चे भक्त हैं तो आपके दिल में सच्ची श्रद्धा है तो आपको मन्दिरों में जाने की आवश्यकता नहीं भक्ति दिल से होती है उसके लिए आस्था का प्रदर्शन करने से मन्दिरों में बेवजह भीड़ इकट्ठी न करके सरकार को भी सहयोग दीजिये .

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