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कथनी और करनी ( भारत धर्म निरपेक्ष देश या… )

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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हमारे देश में हिन्दू , मुस्लिम , सिख , ईसाई और न जाने कितने ही जातियों के लोग प्यार से रहते हैं शायद इसलिए विश्व में हमारा देश धर्म निरपेक्ष की वजह से प्रचलित है। सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में हमारा देश धर्म निरपेक्ष देश है या सिर्फ कहने भर के लिए ही है ? चलिए इसका जबाब भी मैं आपको देती हूँ लेकिन कुछ लिखने से पहले मैं अपनी जिंदगी के अनुभवों पर प्रकाश डालती हूँ। —-
यह घटना सन १९८९ की अलीगढ शहर की है उस वक्त मेरठ , अलीगढ़ , कानपुर , मुजफ्फर नगर और फ़ैजाबाद इन शहरों में सबसे ज्यादा हिंदू मुस्लिम दंगे होते थे। मेरा भाई और मेरा नौकर आटा चक्की पर गेंहूँ पिसवाने स्कूटर से जा रहे थे पता नहीं कैसे स्कूटर अनियंत्रित होकर बिजली के खम्भे से जा टकराया मेरे भाई के पैर में काफी चोट आयी और मेरे नौकर के हाथ की हड्डी टूट गयी। वहाँ तमाशबीनों की भीड़ लग गयी लेकिन किसी भी व्यक्ति ने उनके ऊपर से स्कूटर नहीं उठाया तभी वहाँ एक मुस्लिम शख्स आया उसने भीड़ को डाँटकर भगाया फिर स्कूटर उठाकर दोनों को डा. के पास ले गया , सबसे बड़ी बात देखने की यह थी कि मेरे भाई की खून से सनी हुई सैंडिल पानी से साफ करनी शुरू कर दी , मेरे भाई के मना करने पर वह बोला ” भाई साहब ऐसा करके क्या पता जिंदगी में हुई कोई भूल को खुदा माफ़ कर दे। ”
दूसरी घटना सन २००९ की मेरठ और शामली शहर के बीच की है। मैं और मेरे पति कार से जम्मू जा रहे थे तभी देखा पुलिया के बीचों बीच एक खराब ट्रक खड़ा हुआ था सभी वाहन खेतों के बीच में से बने रास्ते से जा रहे थे बैक करते वक्त हमारी कार का पहिया फिसलकर मेड से हटकर खेत में चला गया। पीछे खड़ी सारी गाड़ियां हार्न बजाने में लगी हुई थीं लेकिन कोई हमारी मदद करने को तैयार नहीं था तभी सामने से एक ट्रक आ रहा था जिसमें सारे सिख बैठे हुए थे वे उतरे अपने ट्रक से रस्सी निकालकर उसका एक सिरा हमारी कार से बांधा और दूसरा ट्रक से और एक ही बार में हमारी कार खेत से बाहर आ गयी।
सवाल यह उठता है कि कहाँ है धर्मों के बीच अलगाव , सभी तो एक दूसरे की मदद करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं तो फिर क्यों अक्सर दो धर्मों के बीच टकराव होने की खबरें यदाकदा सुनने को मिलती रहती हैं। कौन है इन दंगों के पीछे क्या वाकई में दो अलग अलग धर्मों के लोगों में नफरत भरी पड़ी है या यह राजनीति दल की चाल है अगर मेरे अनुभवों की बात करें तो कल भी दो धर्मों के लोगों के बीच प्यार था और आज भी है बड़ी बड़ी बात करने वाले नेताओं ने वोट बैंक की खातिर धर्मों को बांटकर रख दिया है जैसे कांग्रेस और सपा मुसलमानों की पार्टी , भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद हिंदुओं की तो फिर बताइये हमें बाँटने का हक़ इन्हें किसने दिया है ?जनता को इन नेताओं की मक्कारी समझनी ही होगी। ये किसके सगे हैं ? आइये एक नजर इस पर डालें —
६६ सालों में कांग्रेस ने मुस्लिम जाति से हमेशा फायदा ही उठाया फिर जनता पार्टी उठ खड़ी हो गयी जो आज भाजपा में तब्दील हो चुकी है इस पार्टी ने वोट बैंक कि खातिर हिंदुओं को गुमराह करना शुरू कर दिया राम मंदिर कि दुहाई देने के बाद और हिंदुओं को अपने पक्ष में करने के बाद भाजपा के दिल में आज भी कहीं न कहीं मुसलमानों को भी अपने पक्ष में करने की चाह है भले ही वह हिंदुओं के हितैषी होने का दावा कर रही है क्योंकि मोदी भी अपने हर भाषण में मुसलमानों की ही बात करते हुए दिखायी दे रहे हैं और हिन्दू मुस्लिम के झगड़ों का जिम्मेदार सरकार को बता रहे हैं। अगर देखा जाये तो कहीं न कहीं इन सब मामलों के पीछे राज्य सरकार भी पक्षपात करती है भाजपा के नेता सोम को मुजफ्फर नगर में दंगे भड़काने के मामले में सजा तो मिल गयी पर सपा के मुस्लिम नेता कादिर का क्या हुआ ? इस तरह की बातें दो धर्मों में गलतफहमी पैदा करती हैं।
कांग्रेस व भाजपा ही नहीं बल्कि दूसरी पार्टियां भी इन सब में पीछे नहीं हैं वे भी अपने वोट बैंक कि खातिर धर्मों को बाँटने में लगी हुई हैं। अब लालू प्रसाद ,मुलायम सिंह यादव , रामविलास पासवान और नीतीश कुमार ये सभी अपने राजनीति फायदों की वजह से खुद को जबरदस्ती मुसलमानों के हितैषी बनाने में लगे हुए हैं इतना ही नहीं ये पार्टियां कम पढ़ी और अनपढ़ जनता को भड़काने में भी परहेज नहीं करतीं। वोट बैंक की खातिर इन पार्टियों ने जनता को आर्थिक व मानसिक तौर पर पिछड़ा बनाकर रखा हुआ है लेकिन सोशल मीडिया की वजह से जनता चाहे कोई भी जाति की हो अब बेवकूफ नहीं रही वह पहले से कहीं अधिक जागरूक है जनता को भी साफ साफ समझ आने लगा है कि ये नेता वोट बैंक की खातिर दो धर्मों में अलगाव पैदा करते हैं और हिन्दू मुस्लिम जनता को अपने फायदे के लिए इस्तमाल करते हैं और एक दूसरी जाति से कमतर होने की भावना पैदा करवाते हैं जो सरकार आज साम्प्रदायिक रवैया अपना रही है उन्हें जनता का समर्थन नहीं मिलेगा क्योंकि आज की जनता को न तो मंदिर की जरूरत है न ही मस्जिद की भारत में इनकी कहीं भी कमी नहीं है जनता को उस सरकार की ज्यादा जरूरत है जो उनकी परेशानी को समझे उनके हितों की बात करे। आप सभी को याद होगा कि जब मोदी ने राम मंदिर की बात की तो हिंदुओं उन्हें कोई भाव नहीं दिया जब उन्होंने इस मुद्दे से हटकर बात की तब जनता ने उन्हें हाथों हाथ लेना शुरू किया। आज की जनता मंदिर मस्जिद की तरफ नहीं बल्कि सड़क , पानी , बिजली , रोजगार , स्वास्थ्य जैसे मुद्दों की तरफ ज्यादा झुकती है जो भी सरकार जाति सम्प्रदाय जैसे मुद्दे खड़े करती है उसे जनता नकार देती है। अब इन पार्टियों को भी समझना चाहिए कि जो समस्याएं हिंदुओं की हैं वही मुसलमान भाइयों की भी हैं आज की जनता काम देखती है उसे विकास चाहिए न कि मंदिर , मस्जिद। आज मंदिर मस्जिद जैसी बातें पुरानी हो चुकी हैं आज की पीढ़ी कहीं ज्यादा जागरूक है जो पार्टी जनता की समस्याओं को समझती है और देश का विकास पर ध्यान देती है उसे जनता हाथों हाथ लेती है।भारत का मुसलमान या किसी भी धर्म का व्यक्ति अपनी अलग पहचान नहीं बनाना चाहता वह तो सभी धर्मों के लोगों के साथ मिलजुलकर रहना चाहता
है। अब इन पार्टियों को भी अपने फायदे के लिए दो धर्मों को आपस में न लड़वाकर और हिन्दू मुस्लिम का राग न अलापकर देश के विकास और जनता की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए ताकि हमारा देश सही मायनों में धर्म निरपेक्ष देश कहलाये न कि कहने भर या दिखावे के लिए ही नहीं

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