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मैं और मेरी सौत — इ

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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मैंने जैसे ही अपनी सहेली के घर की घंटी बजायी तभी मुझे झन्नाटेदार थप्पड़ की आवाज आयी न कोई सिसकी न ही कोई रोने , चिल्लाने की आवाज मेरे कानों में आयी। मैं हकाबका रह गयी। मुझे सोचकर बुरा भी लगा कि सभ्य परिवार में ऐसा भी होता है कि मर्द नारी पर हाथ उठायें। अभी मैं सोच ही रही थी कि मैं वापस जाने के लिए मुड़ी ही थी कि मेरी सहेली नीरा ने दरवाजा खोल दिया।
” अरे सरिता तुम आओ अंदर आओ न ”. मेरी सहेली नीरा ने मेरा हाथ पकड़कर अंदर आने को आमंत्रित किया।
” नहीं फिर कभी आउंगी मैं तो बस ऐसे ही। मैंने उससे नजरें चुराते हुए कहा।
” अरे ऐसे ही क्यों ” वह मेरा हाथ पकड़कर खीचकर लान में झूले पर ले गयी और हम दोनों बैठ गये।
अच्छा तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए चाय लेकर आती हूँ। इससे पहले मैं कुछ कहती शायद वह खुद सामान्य होने के लिए अंदर चली गयी। वो थप्पड़ वाली बात अभी भी मेरे लिए एक पहेली की तरह थी नीरा का मुँह हल्का सा मुरझाया हुआ तो लग रहा था पर कहीं से थप्पड़ खाने वाला नहीं लग रहा था। मेरे दिमांक में थप्पड़ वाली बात बार बार घूम रही थी। तभी नीरा चाय लेकर आ गयी। मैंने उससे थप्पड़ के बारे में पूँछा तो नीरा का चेहरा गमगीन हो गया और आँखें भर आयीं।
” क्या बताऊं सरिता वह थप्पड़ मैंने अपने गाल पर खुद ही मारा था ” .
” क्या , पर क्यों ? ” मैंने चौंककर पूँछा।
” मेरे पति बिजनस के सिलसिले में अधिकतर बाहर रहते हैं और जब एक आध महीने के लिए आते हैं तो कभी मोबाइल तो कभी लेपटॉप से चिपके रहते हैं उनको अक्सर रात के एक , दो भी बज जाते हैं। इस बार मैं इतनी ज्यादा अवसाद में आ गयी जब मैंने लेपटॉप छीनना चाहा तो गुस्से में उन्होंने मुझे धक्का दे दिया और पता नहीं कैसे मेरा हाथ खुद पर ही उठ गया तभी तुमने घंटी बजा दी। ”
यह एक सत्य घटना है जिसे सुनकर मैं हैरान परेशान हो गयी और कुछ सवालों की मेरे दिमांक में झड़ी लग गयी —
क्या गैजेस्ट हमारे रिश्तों से इतने आगे निकल चुके हैं कि नेट के आगे अपने जीवनसाथी के उपस्थित होने का भी नाममात्र एहसास नहीं होता ?
क्या हमारा सारा सुख इन लेपटॉप और मोबाइल में ही समाया हुआ है ?
क्या अब इतनी नौबत आ गयी है कि इन लेपटॉप और मोबाइल ने जीवन साथी को मानसिक रोगी बना देता है जैसे की नीरा को
मेरे पापा कहा करते थे कि ” अति हर चीज की बुरी होती है चाहे वह अच्छी बात की हो चाहे बुरी बात की , वह हमारे रिश्तों पर प्रभाव जरुर डालेगी ” .
आज के दौर में जीने का अंदाज ही बदल गया है। जिसे देखो कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी उम्र का हो वह अपने सुख की तलाश या वक्त गुजरने का जरिया रिश्तों को छोड़कर फेसबुक , ट्विटर , मोबाइल , को ही बनाये हुए है। जहाँ नेट नयी नयी जानकारियाँ देता है वहीँ हमें अपनों से भी दूर कर रहा है। परेशानी जब खड़ी हो जाती है जब इंसान हद से ज्यादा इसमें तल्लीन हो जाता है और दूसरा व्यक्ति अपनेआप को अकेला , बहुत ही अकेला महसूस करने लगता है फिर धीरे धीरे रिश्तों पर भी असर पड़ने लगता है और वह मानसिकतौर पर बीमार हो जाता है जैसे नीरा के केस में हुआ।
मेरे एक मित्र को लिखने का बहुत शौक है लिखते भी बहुत अच्छा हैं उनके लेख , कविता , गजलें यदाकदा अख़बारों में भी प्रकाशित होती रहती हैं इसलिए प्रशंसकों की भी कोई कमी नहीं पर उनकी बीबी उनसे हमेशा खफा रहती है क्योकि जब वे ऑफिस से घर आते हैं खाना खाकर आराम फरमाकर फिर से लेपटॉप उनके हाथ में आ जाता है जबकि बीबी चाहती है कि जब वह घर के सारे काम खत्म कर ले तो वह वक्त उसका पति उसे दे इसी बात पर आये दिन झगड़ा होता रहता है। ” सेव माई मैरिज ” जैसी संस्था व काउंसलर के पास इस तरह की समस्याएं ज्यादा आ रही हैं। ” दैनिक जागरण ” के अख़बार में एक चौंकाने वाली खबर प्रकाशित हुई — ” गूगल का सबसे ज्यादा प्रयोग करने वाले भारतीय हैं ” .
लाइफ एंजॉय करना कहीं भी गलत नहीं है पर इसकी एक सीमा होनी ही चाहिए। चाहे वह इंसान किसी भी उम्र का क्यों न हो उसे देखना चाहिए कि मेरी इस आदत की वजह से घर के किसी सदस्य को कोई परेशानी तो नहीं हो रही या मेरे दाम्पत्य जीवन कहीं बाधित तो नहीं हो रहा। सबसे ज्यादा परेशानी उन महिलाओं को होती है जो लेपटॉप की ए , बी , सी , डी भी नहीं जानतीं। हमारी एक आंटी हैं वे अपने घर के सभी सदस्यों की इस आदत से परेशान हैं। बेटा , बहू , पोता , पोती सभी लेपटॉप से हर वक्त चिपके रहते हैं उनके लिए किसी को बात करने का वक्त ही नहीं हैं। पूजा पाठ भी आखिर कब तक करें ?
अब सवाल यह उठता है कि परिवार में अगर इसकी लत लग गयी है तो क्या किया जाएँ —
१ — सबसे पहले आप एक दूसरे को दोषी ठहराने से बचें या कहिये कि अपने साथी पर शक मत कीजिये अगर वह महिला मित्र से चेट कर रहा है तो उसके संबंधों को बेवजह शक की निगाहों से न देखें जब तक कोई सबूत न मिले।
२ — नेट की लत छुड़ाने का तरीका लड़ाई झगड़ा हरगिज नहीं , कहते हैं जिस बात के लिए जबरदस्ती की जाती है दूसरा व्यक्ति उस काम को उतना ही ज्यादा या छुपाकर करता है इसलिए लत को छुड़वाने के लिए प्यार और साथ की ज्यादा जरूरत है नाकि लड़ाई झगड़े की। उससे तो बनता काम भी बिगड़ जायेगा। गुस्सा या लड़ाई झगड़ा किसी भी समस्या का हल नहीं।
३ — सबसे बड़ी चीज है नेट पर ”सेल्फ कंट्रोल ” परिवार के जिस सदस्य को नेट की लत लग गयी है उसे देखना चाहिए कि परिवार का कोई सदस्य चाहे वे माता पिता हों , चाहे पत्नी , उसकी इस आदत से दुखी तो नहीं हो रहे अगर हाँ तो उसे अपने ऊपर नेट से कंट्रोल करना चाहिए। अगर वह खुद पर कंट्रोल नहीं कर पा रहा है तो उसे (http// :visitseve.com/made/selfcontrol) की मदद लेनी चाहिए यह एक ऐसा सॉफ्ट वेयर है जो नेट की लत से मुक्ति दिलाता है।
४ –(sabbathmanifesto.org) यह एक ऐसा सॉफ्ट वेयर है जिसे स्मार्ट फ़ोन में इंस्टॉल किया जा सकता है। यह एप्लिकेशन उपभोक्ता को दूर रहने के लिए प्रेरित करता रहेगा और फेसबुक ट्विटर पर लगातार उसके ऑफ़ लाइन होने की सूचना देता रहेगा।
५ — (macfreedom.com) यह एक ऐसी नेट एप्लीकेशन है जो उपभोक्ता के आदेश मिलने पर ८ घंटे के लिए उसका नेट बंद हो जायेगा जो वक्त वह नेट पर बिताता था वह परिवार वालों के साथ बितायेगा पर यह तभी सम्भव हो पायेगा जब वह खुद चाहेगा।
अगर हम इन बातों पर अमल करेंगें तो न केवल हम अपना बिखरा परिवार बचा पायेंगें बल्कि हम अपना वक्त भी रचनात्मक कार्यों में भी लगा पायेंगें और जिंदगी में हमें नया कुछ न कुछ सीखने को भी मिलेगा।

http://getaheadofthegames.com/best-popular-games/plants-vs-zombies-online-game.html

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