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एक तलाश अधूरी सी

Manisha Singh Raghav
Manisha Singh Raghav
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एक तलाश अधूरी सी
मेरे पति की पोस्टिंग पहली बार मेट्रो सिटी में हुई। इससे पहले मेरे पति की पोस्टिंग छोटे छोटे शहरों में ही हुई थी। जब मैं बाजार गयी तो वहाँ हर चीज और शहरों जैसी थी जैसे कि पक्की सड़कें , भीड़भाड़ , बड़े बड़े मॉल्स , ऊँची ऊँची इमारतें ,अगर कुछ अलग थलग सा था तो वह था हुक्का लॉंज , पब बार , वगैहरा वगैहरा और उसमें मौज मस्ती के लिए जाती युवा पीढ़ी अधनंगी लड़कियां सिगरेट का कश लगाते लम्बे बालों वाले लड़के। उन्हें देखकर मुझे लम्बे बालों वाले हिप्पी याद आ गए। मुझे और आजकल के लड़कों में कुछ खास फर्क नजर नहीं आया बस वे चिलम पीते थे और ये सिगरेट के कश लगते रहते हैं ,वे भी लम्बे लम्बे बाल रखते थे और आजकल के युवा भी
एक सौलह आने सच बात यह भी है कि हर माता पिता बढ़ती मंहगाई में नौकरी पेशे वाले हैं। एक सामान्य वर्ग के लोगों की सबसे बड़ी परेशानी अपने बच्चों को नौकरी दिलाने की है उन्हें लगता है कि अगर दोनों नहीं कमाएंगे तो आगे चलकर बच्चों को इंजीनियर या मैडिकल या किसी इंस्टिट्यूट की फ़ीस कैसे भरेंगें या कैसे उन्हें नौकरी के लिए रिश्वत दे पायेंगें क्योंकि आजकल तो हर प्राइवेट इंस्टिट्यूट में दाखिले के लिए भारी भरकम रकम चाहिए और यही जिंदगी की सच्चाई है। घर में डसता अकेलापन बच्चों को खुशियां ढूंढने के लिए मजबूर कर देता है आखिर बच्चा भी कब तक घर में बैठे ?कब तक टी वी देखे कब तक लेपटॉप चलाये ऐसे में वह अपनी खुशियों की तलाश हुक्का बार या पब में या डिस्को में जाकर ढूँढता है। यह सब देखकर मेरे दिमांक में एक सवाल बार बार आता है। —-
युवाओं को तिलिस्मी दुनिया कौन सी दिशा में लेकर जा रही है ? क्या युवाओं को समय बिताने का साधन सिर्फ हुक्का लॉन्ज , पब बार ही हैं
माता पिता दोनों की ही चाह होती है कि उनका बेटा या बेटी उच्च शिक्षा प्राप्त करके अच्छी नौकरी हासिल करें और ऊँचे मुकाम पर पहुंचें वरना दो प्राणियों को पैसा चाहिए ही कितना , इतना ही न कि उनका बुढ़ापा आराम से कट जाये। जब वे अपने खून पसीने की कमाई यूँ बर्बाद होते हुए देखते हैं तो वे बहुत दुखी होते हैं।
अकेलेपन का शिकार होती युवा पीढ़ी के कदम सिर्फ हुक्का बार या पब बार की ही तरफ क्यों बढ़ते हैं क्या खालीपन दूर करने के लिए कोई दूसरी जगह नहीं है। युवाओं को मालूम होना चाहिए कि हुक्का बार या पब बार के मालिकों का इरादा उन्हें मौज मस्ती की जगह देना हरगिज नहीं हैं बल्कि उनका मकसद ढेर सारे पैसे कमाना है। ये सब उनकी कमाई के धंधे हैं और कुछ नहीं इससे युवाओं की सेहत और कैरियर की बर्बादी ही होती है जो एक बार इधर आये तो बार बार आने की लत लग जाये। और अपने बाप दादाओं और पुरखों कि जायदाद हुक्का बार या पब में लूटा सकें जैसे कि पहले जमीदार घरानों के लड़के तवायफों के कोठों पर उड़ाया करते थे। युवाओं को समझना चाहिए कि उनके माता पिता दिन रात मेहनत क्यों और किसके लिए कर रहे हैं ? उनके लिए ही न , अगर उन्हें खुशियां तलाशनी हैं तो अपना हुनर निखारने में तलाशनी चाहिए। अपना समय हुक्का लॉन्ज या पब बार में न बिताकर बस एक बार वृद्धाश्रम या अनाथ आश्रम में बिताएं या फिर कुछ सीखें या अपने हुनर को नयी उड़ान दें और अपना तथा आपने माता पिता का नाम रोशन करें फिर देखिये आपको वह ख़ुशी हासिल होगी जिसकी आपने कल्पना भी न की होगी। ऐसी बहुत सी रईसों की औलादें हैं जिन्होंने अपना समय इधर उधर व्यर्थ न गवांकर उन्होंने अपना तथा अपने माता पिता का नाम भी रोशन किया जैसे अभिनव बिंद्रा एक अच्छे खासे बिजनेस वाले की संतान हैं। राहुल गाँधी ,सैफ अली खान ,राजबर्धन और भी बहुत हैं जिन्होंने अपने पुरखों का पैसा कभी बर्बाद नहीं किया। फिर आज का युवा क्यों अपना कीमती समय नष्ट कर रहा है आज के युवा को समझना चाहिए कि हुनर एक ऐसा धन है जिसे कोई नहीं छीन सकता। हुनर में प्रवीणता हासिल करने से उन्हें वह सब मिलेगा जिसकी हर इंसान को चाह होती है और वह है धन और इज्ज्त हुनर में प्रवीण होना ही सुखी जीवन की प्राप्ति है। अपने आपको हुनर में महारत हासिल करते हुए देखकर वह हार्दिक ख़ुशी महसूस होती है जिसे मैं शब्दों में भी बयाँ नहीं कर सकती युवा हुनर में प्रवीणता हासिल करने पर अपने और अपने माता पिता के साथ साथ अपने देश का नाम भी रोशन करेगा जैसे अभिनव बिंद्रा ने किया है।

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